भारत में दालों को अक्सर गरीबी का भोजन कहा जाता है। फिर भी खाने में अगर दाल ना हो तो खाना सुना सुना सा लगता है। स्वाद के साथ दाल को पौष्टिकता से भरपूर आहार के रूप में जाना जाता है। हमारे देश में कई किस्मों की दालों का उत्पादन होता है। भारत में 95% घरों में दाल खाई जाती है। भारत में उत्पादित दाल इतनी मशहूर और अच्छी होती हैं। इसका आयात विदेशों में भी किया जाता है। । दालों को प्रोटीन का सबसे अच्छा स्रोत माना गया है। अगर आप किसी भी दाल का सेवन करें। तो सब में पोषक तत्व पाए जाते हैं। आज हम अपने इस आर्टिकल में आपको विभिन्न किस्मों की दालों के अद्भुत फायदे बताएंगे। साथ ही दालों का इतिहास क्या है। इसकी भी जानकारी देंगे।

क्या है दालों का इतिहास

वैसे दुनिया में कई किस्म की दाल पाई जाती है। जैसे मसूर की दाल ,अरहर की दाल ,उड़द की दाल ,चना की दाल ,मूंग की दाल सभी में पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं। वैसे इन दोनों का नाम सुनते ही जेहन में लजीज तड़के वाली दाल की तस्वीर बन जाती है। ऐसा हो भी क्यों ना, दाल हम भारतीयों की फेवरेट डिश है। पर जिस दाल को आप बड़े ही चाव से खाते हैं। क्या आप इस दाल का इतिहास जानते हैं। शायद नहीं, चलिए हम आपको आज बताते हैं। घर पर बनने वाली दाल हमारे खाने का हिस्सा कब और कैसे बनी है। क्या है इसका पूरा इतिहास। आपको जानकर यह हैरानी होगी कि दाल हमारे खाने का हिस्सा सिंधु घाटी सभ्यता के जमाने से ही है।

कभी इन्हें सूखी फलियां कहा जाता था। और लोग इसे गरीबी का खाना कहते थे। चना मटर जैसी दालों के पहले ये दालें हरियाणा के घग्गर में मिली थी। यह हड़प्पा संस्कृत से जुड़ा एक पुरातत्व स्थल है। वक्त के साथ दाल के प्रति लोगों का नजरिया बदला और इसे एक स्टेटस सिंबल यानी अमीरों का भोजन कहा जाने लगा। पुराने जमाने में राजा महाराजा के घरों में दाल किसी मेहमान के आने पर ही बनाई जाती थी।

इतना ही नहीं चंद्रगुप्त मौर्य के समय में इसके कई ऐसे साक्ष्य मौजूद हैं। ऐसा कहा जाता है कि 300 BC में चंद्रगुप्त मौर्य की शादी में भी दाल को घूघ्नी के रूप में बनाया गया था। यह पूर्वी भारत के लोगों की शादियों में मनाई जाने वाली सैकड़ों साल पुरानी परंपरा थी। दाल को अलग-अलग तरह से बनाने को लेकर भी पहले से कई प्रयोग होते रहे हैं। मध्यकालीन भारत में दाल साहिब व्यंजन था। तब इसे दम पुख़्त नाम की विधि द्वारा बनाया जाता था। इस प्रक्रिया में दाल को भाप की मदद से धीरे-धीरे पकाया जाता था। पहले राजा महाराजाओं के जमाने में सिर्फ चना की दाल ही परोसी जाती थी। क्योंकि इस चना की दाल को साही दाल का दर्जा प्राप्त था।

कहते हैं कि अगर राजा के सामने कोई अन्य दाल परोसी जाती थी। तो उसे सजा-ए-मौत दी जाती थी। मुगल काल में भी दाल को पसंद किया जाता था। रानी जोधा बाई की रसोई में पंचमेल दाल बनाई जाती थी। जिसमें 5 तरह की दालों का इस्तेमाल होता था। शाहजहां के समय भी शाही पंचमेल दाल बनाई जाती थी। इसी कड़ी में आपको एक दाल की और दिलचस्प कहानी बताते हैं। मुरादाबादी दाल शाहजहां के तीसरे राजकुमार ने मूंग दाल के साथ एक प्रयोग किया था। उन्होंने मूंग दाल को 5 घंटे तक पकाया और फिर उसमें प्याज और हरी मिर्च का तड़का लगाया था। यही दाल आगे चलकर मुरादाबादी दाल के नाम से फेमस हुई।

समय के साथ पूरे भारत में दाल को अलग-अलग मसालों और तड़कों के साथ बनाया जाने लगा। इसलिए आज तकरीबन हर राज्य की अपनी एक स्पेशल दाल की रेसिपी है। 16 वीं सदी में गुजरात में दाल सेवड़ा पकोड़े और खांडवी बनाई जाती थी। उत्तर भारत में दाल से परांठे बनाए जाने लगे। इसी प्रकार अन्य राज्यों की अपनी-अपनी अलग रेसिपी है।

दाल के अद्भुत फायदे

अरहर दाल : अरहर दाल में प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट व फाइबर मिलता है । यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करता है। अरहर दाल में विटामिन सी, विटामिन ए विटामिन बी कॉम्प्लेक्स मैग्नीशियम, फॉस्फोरस ,पोटेशियम ,सोडियम और जिंक पाया जाता है ।यह दाल खाने में बहुत ही अच्छी होती है। इसका रंग पीले कलर का होता है।

चना दाल : चना दाल में सबसे ज्यादा कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। इसमें प्रोटीन भी अधिक मात्रा में पाया जाता है। लेकिन फाइबर की मात्रा कम होती है। चना दाल से वजन कम होता है। लेकिन शरीर के पोषक तत्वों की कमी को पूरा करता है। पाचन सही करने में चना का दाल बहुत मदद करती है। दालों के राजा चना दाल को ही कहते हैं।

मसूर दाल : मसूर दाल से भरपूर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। मसूर दाल शरीर को सभी तरह से फायदा पहुंचाता है। इस दाल में फैट ना के बराबर होता है। इसमें प्रोटीन और फाइबर अधिक मात्रा में पाया जाता है।

मूंग दाल : इसे छिलका मूंग दाल भी कहते हैं। इसमें सबसे ज्यादा प्रोटीन पाया जाता है। यह दाल सुपाच्य होता है मतलब पचने में आसानी होती है। मूंग दाल में कार्बोहाइड्रेट कम होने से इसे स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है। इस दाल में फाइबर ज्यादा अधिक होने से पेट की समस्या वाले रोगों के लिए फायदेमंद होता है।

पीला मूंग दाल : इसमें प्रोटीन की मात्रा सबसे ज्यादा पाई जाती है। यह आसानी से पच जाती है। बीमार लोगों के लिए पीला मूंग दाल सबसे अधिक फायदेमंद है। इसकी खिचड़ी बीमार लोगों को दी जाती है। मूंग दाल में 50% प्रोटीन 20% कार्बोहाइड्रेट और 48% फाइबर होता है। 1 फ़ीसदी सोडियम भी मिला होता है। कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बिल्कुल भी नहीं होती ।

रात में दाल खाने से होता है नुकसान

कई लोग सुबह की बची हुई दाल रात में खाते हैं। या फिर रात में ताजी दाल बनवा कर खाते हैं। लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो भोजन की तासीर के हिसाब से ही उसके सेवन के समय को तय किया जाता है। नियमों के सही से पालन न करने पर शरीर में वात पित्त और कफ के असंतुलन का खतरा बढ़ जाता है। रात के समय हमेशा हल्के भोजन का ही सेवन करना चाहिए । क्योंकि दाल भारी होती है। और रात में खाने के बाद अक्सर जल्दी ही हम सोने चले जाते हैं। ऐसे में शरीर दाल का पाचन सही से नहीं कर पाता। ऐसी स्थित में यह अपच जैसी पाचन संबंधी समस्याओं के होने का खतरा बना रहता है। रात के भोजन में कभी भी दाल नहीं खाना चाहिए।

अधिक मात्रा में दाल खाने से क्या नुकसान होता है।

अगर आप अधिक मात्रा में दाल का सेवन करते हैं। तो इसका सीधा असर आपकी किडनी पर होता है। ज्यादा दाल खाने से किडनी में स्टोन की समस्या हो सकती है।
ज्यादा दाल खाने से पेट की समस्याएं हो सकती हैं। खाने में ज्यादा मात्रा में दाल को शामिल करने से गैस की परेशानी एसिडिटी होती है।अगर किसी व्यक्ति को गाउट की बीमारी है तो उसको डॉक्टर से बिना पूछे दाल बीज का सेवन नहीं करना चाहिए इसका कारण यह है कि दाल में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है जो शरीर के लिए नुकसानदायक होती है। अधिक दाल खाने से आप से जुड़ी समस्याएं जैसे बदहजमी ,डिहाईड्रेशन ,थकान ,जी मचलना चिड़चिड़ापन ,महसूस होना , सिर दर्द होना ,डायरिया जैसी दिक्कतें हो सकती हैं।

मिक्स दाल क्यों खानी चाहिए जानिए इसके फायदे

अगर आपको कुछ दालों का स्वाद पसंद नहीं आता है। जिसकी वजह से आप गिनी चुनी दाले ही खाते हैं। तो आपको हम बताने जा रहे हैं। एक ऐसा तरीका है। जिसे अपनाकर आप सभी दालों के पौष्टिक तत्व को पा सकते हैं। इसके लिए आप मिक्स दाल का उपयोग कर सकते हैं आइए जानते हैं इसके फायदे

  • अगर आपको कोई दाल स्वाद में पसंद नहीं आ रही है। तो आप इसे पंचरत्न दाल में शामिल कर बना सकते हैं। मतलब 5 सालों का मिश्रण इससे आपको भरपूर मात्रा में कैल्शियम फास्फोरस आयरन प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट मैक्सी मैग्नीशियम अनिल और खरीद प्राप्त होंगे।
  • मिक्स दाल खाने में शामिल खराब पाचन संबंधी समस्याओं से बच सकते हैं। और तबीयत खराब होने पर शारीरिक कमजोरी को दूर कर इन दालों का सेवन करने से ताकत बढ़ती है।
  • मिक्स दाल में आप चने की दाल को जरूर शामिल करें। इसमें एनीमिया, पीलिया कब्ज और बालों की समस्याओं से बच सकते हैं। इसमें फाइबर की मात्रा भरपूर होती है। जो आपके शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करती है।
  • मिक्स दाल में अरहर की दाल शामिल करने से आप डायबिटीज कैंसर दिल की बीमारियों से बच सकते हैं। साथ ही रीढ़ की हड्डी समस्या से जुड़ी संबंधित समस्याएं समाप्त हो सकते हैं। यह दिमाग के लिए भी अधिक फायदेमंद है।

सबसे ज्यादा प्रोटीन किस दाल में होता है।

सबसे अधिक प्रोटीन मूंग की दाल में होता है। 100 ग्राम मूंग की दाल में करीब 9 ग्राम प्रोटीन होता है।

पेट के लिए सबसे हेल्दी और हल्की दाल कौन सी है।

अरहर और मूंग की दाल सबसे हेल्दी और हल्की दाल है जो आसानी से पड़ जाती है।

कौन सी दाल खाने से गैस बनती है।

उड़द की दाल खाने से बचना चाहिए। क्योंकि यह गैस एसिडिटी अधिक मात्रा बनाती है।

कब्ज के लिए कौन सी दाल अच्छी है।

कब्ज के लिए मूंग की दाल सबसे अच्छी है।

Hindi Mail

View all posts

Add comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *