कुछ साल पहले भारत में पोलियो को एक बहुत ही गंभीर बीमारी के रूप में जाना जाता था। और उस वक्त बच्चों को पोलियो होना बहुत आम बात थी। उस समय पोलियो ने कई लोगों को अपनी चपेट में लिया था। लेकिन भारत के निरंतर प्रयासों के बाद आज भारत में पोलियो ना के बराबर रह गया है। यह भारत की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 27 मार्च 2014 को भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया था। क्योंकि साल 2011 में पश्चिम बंगाल में पोलियो का एक अंतिम मरीज पाया गया था। हर साल 24 अक्टूबर को पूरी दुनिया में विश्व पोलियो दिवस मनाया जाता है। आज हम आपको इस आर्टिकल के जरिए बताएंगे पोलियो क्या है यह क्यों होता है। और इसके कारण , उपाय संबंधित पूरी जानकारी देंगे।
पोलियो क्या है
पोलियो को पोलियोमाइलाइटिस के नाम से भी जाना जाता है। यह एक गंभीर संक्रामक रोग है। जो पोलियोवायरस यानी संक्रमण के कारण होता है। यह संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। यह संक्रमण व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाता है। जिससे व्यक्ति लकवा ग्रस्त हो जाता है। और शरीर के कई सारे अंग ठीक से काम नहीं कर पाते। पोलियो वायरस हमारे तंत्रिका तंत्र पर भी हमला करता है। इस बीमारी के विशेषज्ञों का कहना है कि 5 साल से कम उम्र के बच्चों में अन्य समूह की तुलना में इस वायरस का संक्रमण ज्यादा होता है। एक रिसर्च के अनुसार 200 बच्चों में पोलियो होने पर एक व्यक्ति को पैरालिसिस होता है। पोलियो होने पर लकवा, सांस लेने में कठिनाई जैसी समस्याएं हो जाती है। कभी-कभी व्यक्ति व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। पोलियो से बचाव के लिए 0 से 5 वर्ष तक के बच्चों को पोलियो दवा के अनुसार टीकाकरण किया जाता है।
पोलियो कितने प्रकार के होते हैं
अक्सर लोग पोलियो को एक ही प्रकार की बीमारी समझते है। लेकिन ऐसा नही है। पोलियो कई प्रकार के होते है। जो निम्न है।
पैरालिटिक पोलियो
इसमें पोलियो वायरस कुछ नर्व फाइबर के जरिए फैलता है। और रीढ़ की हड्डी के साथ मस्तिष्क के भाग में मौजूद मोटर न्यूरॉन्स जो जरूरी मांसपेशियों की गतिविधियों को नियंत्रित करती हैं। जैसे बोलना ,चलना ,सांस लेने और निगलना आदि को नुकसान पहुंचाता है। यह क्षति पैरालिटिक पोलियोमाइलाइटिस का निर्माण करती हैं। पैरालिटिक पोलियो के प्रकार को तीन भागों में बांटा गया है
स्पाइनल पोलियो
इस प्रकार में पोलियो वायरस रीढ़ की हड्डी में मौजूद मोटर न्यूरॉन्स को प्रभावित करता है। यह वायरस प्रभावित क्षेत्र की मांसपेशियों को कमजोर बना सकता है। और उन्हें लकवाग्रस्त कर सकता है।
बलबर पोलियो
इस प्रकार के पोलियो वायरस मस्तिष्क के बलबर भाग को प्रभावित करता है। वायरस बलबार भाग की नसों को नुकसान पहुंचाता है जिसके कारण सांस लेने ,बोलने , निगलने में दिक्कत होती है।
बल्बोंस्पाइनल पोलियो
पैरालिटिक पोलियो के लगभग 19% मामलों में मरीज वोल्वो स्पाइनल पोलियो से पीड़ित होते हैं इस तरह की दिक्कत में रीढ़ की हड्डी और बल्बों दोनों पोलियो वायरस से प्रभावित होते हैं। इस दौरान व्यक्ति को वेंटीलेटर के बिना सांस लेने में समस्या होती है। साथ ही उसके हाथ और पैरों पर लकवा मार जाता है। साथ ही हृदय गति प्रभावित होती है।
पैथॉफिजियोलॉजी
पोलियो के इस प्रकार में पोलियो वायरस मुंह के द्वारा शरीर में प्रवेश करता है। शरीर में प्रवेश करते ही सबसे पहले यह ग्रसनी , गले के भाग और आंतों का म्यूकोसा की कोशिकाओं को संक्रमित करता है। यह वायरस आगे बढ़कर केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। और शरीर में इन्फ्लेशन का कारण बन जाता है।
पोलियो होने के क्या कारण है
- पोलियो वायरस दूषित पानी में और भोजन या वायरस से संक्रमित व्यक्ति के साथ सीधे संपर्क में आने से फैलता है। पोलियो इतना अधिक संक्रामक है कि व्यक्ति के साथ रहने वाले को भी पोलियो हो जाता है।
- संक्रमित मल के आस पास आने वाली खिलौने जैसी वस्तुओं के प्रसारित होने के संपर्क में आने से व्यक्ति पोलियो वायरस से ग्रसित हो जाता है।
- पोलियो का संक्रमण कभी-कभी छींकने और खांसने से भी होता है।
- शौचालय में अक्सर कई लोग आते-जाते रहते हैं। लेकिन यदि शौचालय के फ्लेश को संक्रमित व्यक्ति उपयोग करता है। तो इसके बाद कोई स्वस्थ व्यक्ति उसको उपयोग करेगा तो संक्रमण फैल जाएगा।
- यदि गर्भवती महिला वायरस यानी एचआईवी पॉजिटिव होती है। तो उसका बच्चा भी वायरस से संक्रमित हो जाएगा।
पोलियो होने के क्या लक्षण हैं
पोलियो के लक्षण पोलियो के प्रकार पर निर्भर करते हैं। कुछ लोगों को नॉन पार्लैटिक होता है। जिसमें हल्के फ्लू होते है। ये 10 दिन तक रहते हैं। पोलियो के लक्षण निम्न प्रकार है।
- बुखार आना
- सिर दर्द होना
- थकान होना
- उल्टी आना
- गले में खराश होना
- गर्दन में दर्द होना
- मांसपेशियों कमजोर होना
- मेनिनजाइटिस
- बाहों में पैरों में दर्द होना
- पीठ में दर्द होना
पोलियो से बचाव कैसे करें
- पोलियो के बचाव करने के लिए छोटे बच्चों को सही समय पर टीका लगवाना चाहिए।
- बच्चों को AVP के अनुसार चार खुराक दी जाती हैं। जिसमें 2 महीने 4 महीने 6 से 18 महीने 4 से 6 वर्ष में एक पोलियो का बूस्टर दिया जाता है।
- सीसीडी की सलाह के अनुसार पोलियो ग्रस्त इलाके में यात्रा करने से जाने से पहले अपने बच्चे के लिए पोलियो बूस्टर जरूर लें।
- इस बात का विशेष ध्यान रखें 5 साल तक के बच्चों को हमेशा पोलियो ड्राप चाहिए। जिससे बच्चों को कभी पोलियोकी शिकायत ना हो।
- आपको बचपन में पोलियो के टीम नहीं लगवाए गए है। तो आप वयस्कता में टीके लगवा सकते हैं।
- आप वयस्क में किसी भी समय पहली खुराक ले सकते हैं। दूसरी खुराक एक 2 महीने के बाद अंतिम खुराक दूसरे के 6 से 12 महीने के बाद ले सकते है।
पोलियो वैक्सीन कितने प्रकार के होते हैं।
पोलियो वैक्सीन निम्न प्रकार है
ओरल पोलियो वैक्सीन
पोलियो से बचाव के लिए इस वैक्सीन को मुंह के जरिए दिया जाता है। इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी होते हैं दर्शन वैक्सीन में लाइव वायरस की मौजूदगी के कारण इसे लेने वाला व्यक्ति दूसरे को संक्रमित कर सकता है। दुर्लभ मामलों में यह ओरल वैक्सीन ,वैक्सीन ड्रैब्ड,पोलियो वायरस बनकर पोलियो का कारण भी बन सकती है। यही वजह है कि अमेरिका में इसे बैन कर दिया गया है फिर भी कई देशों में इस वैक्सीन को दिया जा रहा है।
इनएक्टिवेटेड पोलियोवायरस वैक्सीन
इस वैक्सीन को व्यक्ति के बाह्य पैर में इंजेक्शन के जरिए दिया जाता है यह पोलियो का टीका व्यक्ति को पोलियो के तीन प्रकार से बचाता है तीनों प्रकार से बचाता है। इसमें लाइव वायरस नहीं होते हैं इसमें इसलिए यह पोलियो वैक्सीन अन्य लोगों के संक्रमण का कारण नहीं बनती।
पोलियो का उपचार कैसे किया जाता है
- तरल फलों का सेवन करें जैसे पानी और जूस।
- मांसपेशियों को आराम देने के लिए गर्म रखें। इस स्थित में मालिश किया जा सकता है।
- दवाएं जो मांसपेशियों को आराम देती हैं उनका सेवन करना चाहिए।
- दर्द निवारक दवाएं ले सकते हैं नॉनस्टेरॉयडल anti-inflammatory ड्रग्स आदि।
- शारीरिक उपचार और व्यायाम मांसपेशियों की रक्षा करने के लिए मदद करते हैं।
- मैकेनिकल वेंटीलेशन एक मशीन है। जो पोलियो ग्रस्त रोगी को सांस लेने में मदद करती है।इसका उपयोग करना चाहिए।
पोलियो वायरस के साइड इफेक्ट क्या है
यदि आपको वैक्सीन पहली बार लेने के बाद एलर्जी की गंभीर प्रतिक्रिया हुई है। तो वह बूस्टर प्राप्त करने की सलाह नहीं दी जाती है। पोलियो वैक्सीन के साइड इफेक्ट इस प्रकार हैं।
- उल्टी आना
- इंजेक्शन स्थल पर दर्द ,लालिमा होना
- सूजन होना
- शरीर में दर्द होना
- बुखार के साथ जोड़ों में दर्द होना
गंभीर दुष्प्रभाव या इसे एलर्जी की प्रक्रिया के रूप में इंगित किया जा सकता है। जैसे
- खुजली
- घबराहट
- पीलापन
- चेहरे ,होठों में सूजन
- पीलापन
- त्वचा पर नीलापन
- जीभ, गले में सूजन होना
- कमजोरी आना
पोलियो के जोखिम और जटिलताएं क्या है
पैरालिटिक पोलियो अस्थाई रूप से मांसपेशियों को लकवाग्रस्त ,विकलांगता और कॉलेज कूल्हों टखनों और पैर में विकृति पैदा कर देता है। साथ ही अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
फेफड़ों का फूलना
पलमोनरी एडिमा तब होता है। जब आपके फेफड़ों में रक्त वाहिकाओं में रक्तचाप की वृद्धि होती है। दबाव के कारण फेफड़े अच्छी तरह से अक्सीजन नहीं ले पाते। पोलियो श्वासन मांसपेशियों को प्रभावित कर सकता है। और कुछ लोगों को सांस लेने में मदद के लिए वेंटीलेटर की सहायता पड़ती है।
मायोकार्डिटिस
मायोकार्डिटिस दिल की मांसपेशियों मायोकार्डियम की सूजन होने कारण बनता है ऐसा तब होता है जब पोलियो वायरस दिल की मासपेशियों की तंत्रिका कोशिकाओं पर हमला करता है। जिससे सीने में दर्द धड़कन तेज होती है।
डिप्रेशन
क्योंकि यह बीमारी कमजोरी कारण बनती है। तो और लोग अवसाद के शिकार हो सकते हैं। शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांगता के साथ पोलियो रोगी को खुद के साथ रहने में दिक्कत होती है।
निष्कर्ष
पोलियो एक सामान्य संक्रामक रोग है। लेकिन इसका सही समय पर इलाज ना कराया गया तो पोलियो रोगी की मृत्यु भी हो सकती है। इसलिए कोशिश करें कि बच्चे के जन्म के समय ही पोलियो की खुराक दिलवा दें। हमने आपको पोलियो संबंधित रोग से आर्टिकल में उचित जानकारी दी है। उम्मीद है कि आपको पसंद आई होगी।
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